हम रोज़ घरों से निकलते हैं
अक्सर बसों में चढ़ते-उतरते हैं
लेकिन कंडक्टर की बदसलूकी पर
हम क्यों खामोश हो जाते हैं....
राह चलती लड़कियों पर मंचले फब्तियाँ कसते हैं
उस अकेली की आवाज़ को भी हम दबाते हैं
भले घर की हो कहकर उसे ही समझाते हैं
पर हम क्यों खामोश हो जाते हैं....
नेता आते हैं और जाते हैं
धर्म तो कभी जाति के नाम पर हमको लड़वाते हैं
बात-बात पर भारत बंद करवाते हैं
हम फिर भी मन मसोस कर आगे बढ़ जाते हैं
पर हम खामोश क्यों रह जाते हैं....
एक अदने काम के लिए भी
सरकारी दफ़्तर के बीसीयों चक्कर लगाते हैं
अफसरों की जेबें गर्म करने में भी न शर्माते हैं
लेकिन इस घूसखोरी और चाटूकारिता के खिलाफ
हम क्यों खामोश हो जाते हैं....
रोज़ एक आरुषि, जेसिका और प्रियदर्शिनी कत्ल की जाती है
ख़बरे आती हैं और सनसनी फैलाकर चली जाती हैं
सभी के दिलों से पुलिस, प्रशासन और कानून की हाय-हाय निकलती है
लेकिन हमारी खामोशी फिर भी वहीं रह जाती है
सवाल अब भी ज्यों का त्यों है
हम क्यों खामोश हो जाते हैं
आँखे मूंदे बस जिंदगी बिताते जाते हैं
सबकुछ जानकर भी अनजाने रहना चाहते हैं
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में
जीने का शायद ये ईनाम है
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारा अधिकार है
शायद यही हम भूल जाते हैं
इसलिए बस इसलिए खामोश रह जाते हैं !!!!!!!
You Can See page http://meenakshikandwal.blogspot.com
अक्सर बसों में चढ़ते-उतरते हैं
लेकिन कंडक्टर की बदसलूकी पर
हम क्यों खामोश हो जाते हैं....
राह चलती लड़कियों पर मंचले फब्तियाँ कसते हैं
उस अकेली की आवाज़ को भी हम दबाते हैं
भले घर की हो कहकर उसे ही समझाते हैं
पर हम क्यों खामोश हो जाते हैं....
नेता आते हैं और जाते हैं
धर्म तो कभी जाति के नाम पर हमको लड़वाते हैं
बात-बात पर भारत बंद करवाते हैं
हम फिर भी मन मसोस कर आगे बढ़ जाते हैं
पर हम खामोश क्यों रह जाते हैं....
एक अदने काम के लिए भी
सरकारी दफ़्तर के बीसीयों चक्कर लगाते हैं
अफसरों की जेबें गर्म करने में भी न शर्माते हैं
लेकिन इस घूसखोरी और चाटूकारिता के खिलाफ
हम क्यों खामोश हो जाते हैं....
रोज़ एक आरुषि, जेसिका और प्रियदर्शिनी कत्ल की जाती है
ख़बरे आती हैं और सनसनी फैलाकर चली जाती हैं
सभी के दिलों से पुलिस, प्रशासन और कानून की हाय-हाय निकलती है
लेकिन हमारी खामोशी फिर भी वहीं रह जाती है
सवाल अब भी ज्यों का त्यों है
हम क्यों खामोश हो जाते हैं
आँखे मूंदे बस जिंदगी बिताते जाते हैं
सबकुछ जानकर भी अनजाने रहना चाहते हैं
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में
जीने का शायद ये ईनाम है
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारा अधिकार है
शायद यही हम भूल जाते हैं
इसलिए बस इसलिए खामोश रह जाते हैं !!!!!!!
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